वो पहले सा ज़िंदगी में कुछ ना रहा
वो ख़ाली सा वक़्त अब ना रहा
क्यूँ फ़र्क़ बताए ना ये आईना?
क्यूँ फ़र्क़ बताए ना ये आईना?
जो पल बेरंग से थे, वो तेरे रंग में रंगे हैं
हाथों की मेरी लकीरें तेरे हाथों से मिल रही हैं
क्या ख़्वाब है या हक़ीक़त है?
क्यूँ फ़र्क़ बताए ना ये आईना?
क्यूँ फ़र्क़ बताए ना ये आईना?
क्यूँ फ़र्क़ बताए ना ये आईना?